शनिवार, 1 मार्च 2014

एक्स वाई जेड

पण्डित धरणीधर शास्त्री नैनीताल जिले के एक महाविद्यालय में प्राध्यापक हैं. शास्त्री जी के एक साथ बहुत से विशेषण हैं. वे धैर्यवान हैं, देव-निष्ठावान, सुजान व भाग्यवान भी हैं. उनकी सुलक्षिणी अर्धांगिनी पद्मिनी देवी उनके बहुत अनुकूल है. हमेशा उनके हर कथन को आप्तोपदेश मानती रही है. ऐसा समर्पण-श्रद्धाभाव अमूमन आजकल की प्रबुद्ध नारियों में बहुत ढूंढने से ही मिल सकता है.

पहले पण्डित जी की चाहना जरूर थी कि सन्तानों में एक पुत्र भी हो, पर उनके हाथ की लकीरों में सिर्फ बेटियाँ ही लिखी थी. एक के बाद एक पाँच बेटियाँ पैदा होती रही. परमेश्वर ने रूप, गुण के अलावा सभी को विलक्षण बुद्धि भी प्रदान की. माता-पिता से सभी संस्कार पाते हुए ये बेटियाँ स्कूली शिक्षा पाकर परास्नातक तक की पढ़ाई कर रही हैं. शास्त्री जी पत्नी सहित अपनी बेटियों से पूर्ण संतुष्ट हैं. उनकी समझ में आ गया है कि इस जमाने में बेटियाँ बेटों से ज्यादा जिम्मेदार हो गयी हैं.

पितृधर्म का निर्वाह करते हुए सबसे बड़ी बेटी सरस्वती का विवाह दो वर्ष पूर्व जयपुर राजस्थान निवासी एक सजातीय युवक दिनेश वैष्णव से विधिविधान से करवा दिया था. दिनेश सिविल इंजीनियर है. बेटी नम्बर दो भैरवी ने मनोविज्ञान में एम.ए., फिर एम.फिल. कर लिया था. उसने इस साल नेट की परिक्षा भी पास कर ली है. बहन-बहनोई के बुलावे पर वह पिता के साथ जयपुर गयी, जहाँ उसे किसी कॉलेज में प्राध्यापक के पद के लिए मैनेजमेंट के साथ साक्षात्कार करना था. कुछ अपरिहार्य कारणों से साक्षात्कार की तिथि एक महीने टाल दी गयी. दोनों पिता-पुत्री को इतने दिनों तक वहाँ ठहरना भारी लगा और दोबारा जयपुर आने का कार्यक्रम बनाकर रानीखेत एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवा कर लौट पड़े.

ट्रेन से हल्द्वानी उतरना था. उतरते समय भैरवी ने देखा कि उसकी अपनी अटैची जिसमें कपड़ों के साथ सभी ओरीजिनल डिग्रियां, सर्टिफिकेट्स व जरूरी कागजात थे, गायब थी. अटैची में उसने अपनी सोने की दो चूड़ियाँ भी रखी थी. बदहवास होकर उसने पिता को अटैची चोरी होने की बात बताई तो शास्त्री जी भी परेशान हो गए. ये अनहोनी थी, जिसकी उन्होंने कोई कल्पना भी नहीं की थी. बाकी मुसाफिर अपनी अपनी राह चल  दिये. रेलगाड़ी भी अगले स्टेशन काठगोदाम को चल पड़ी. स्टेशन मास्टर और पुलिस को रिपोर्ट लिखाई, पर चोर तो पहुँच से बहुत दूर था, ना जाने पिछले किस स्टेशन पर ये वारदात करके उतर गया होगा. भारतीय रेलगाड़ियों में ऐसी घटनाएं आजकल आम हो गयी हैं. ज़रा सी नजर से बाहर होते ही सामान गायब होने का खतरा बना रहता है. चलती गाड़ियों में  खिडकियों के पास बैठे मुसाफिर विशेषकर महिलाओं का सामान-पर्स या जेवर झपट्टा मारकर लूट लिया जाता है. चोर-झपट्टामार ये नहीं देखता है कि मुसाफिर को उसकी हरकत से कितना कष्ट होता है. कई बार तो कान या गले का आभूषण खिंचने पर महिलाओं को लहूलुहान होते देखा गया है.

सभी रेलवे स्टेशनों पर ये जरूर लिखा रहता है कि चोरों-जेबकतरों से सावधान, यात्री अपने सामान की रक्षा खुद करें. रेलवे का सुरक्षा तन्त्र बहुत लापरवाह और भ्रष्ट लगता है. चोरी होने की स्थिति में यात्री बेचारा होकर रह जाता है. जब कोई विदेशी सैलानी बेफिक्री से यहाँ के रेलों में सफर करता है और उसका पासपोर्ट-वीजा-नकदी सब चोरी चला जाता है तो उसको कैसा लगता होगा? ये हमारी राष्ट्रीय शर्मिंदगी की बात है.

बेटी को ज्यादा परेशान देखकर शास्त्री जी ने हिम्मत-दिलासा दिलाई और कहा, जो नियति में है, उसे टाला नहीं जा सकता है, सब ठीक हो जाएगा, सर्टिफिकेटस की प्रतियां दुबारा प्राप्त की जा सकती हैं. कपडे व चूड़ियाँ फिर बन जायेंगी, आदि आदि.

घर पहुँच कर उदासी के साथ घटनाक्रम की चर्चा हुई  सभी सदस्य इस त्रासदी से दु:खी हुए शास्त्री जी ने सबको धैर्य बंधाते हुए अंग्रेजी का ये जुमला दोहराया, "That which can not be cured, should be endured."  भैरवी को कपड़े व सोना खोने का इतना दु:ख नहीं था, जितना कि उसकी बहुमूल्य डिग्रियां व सम्बंधित कागजात जाने का था. प्रमाणपत्रों की तो उसे सद्य जरूरत भी थी.

माँ पद्मिनी ने कहा, अगर चोर पढ़ा-लिखा समझदार होगा तो तुम्हारे प्रमाणपत्रों को देखकर अवश्य सोचेगा कि वे सब उसके काम के नहीं हैं, वह उन्हें हमारे पते पर भेज भी सकता है.

हाँ, सचमुच एक सप्ताह बाद एक कुरियर के मार्फ़त भैरवी के समस्त कागजात-प्रमाणपत्र उसके घर के पते पर आ गए. भेजने वाले ने अपना नाम लिखा था, एक्स-वाई-जेड’.  परिवार में सारी खुशियाँ लौट आई. परमेश्वर और चोर दोनों को धन्यवाद दिया गया.
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