सोमवार, 7 जनवरी 2013

पर माँ खुश नहीं है

ले. कर्नल शक्तिसिंह मेहरा ने अपने आवासीय परिसर में एक सर्वेंट क्वार्टर बनाने की योजना बनाई. उनके दिमाग में एक बात आई कि दो कमरों का एक पूरा सेट बना दिया जाये ताकि नौकर के ना रहने की स्थिति में इसमें कोई किरायेदार भी रखा जा सके. और हुआ भी ऐसा ही. उनका वर्तमान घरेलू नौकर उसी शहर में रहता था इसलिए उसे क्वार्टर की जरूरत ही नहीं पड़ी.

घर में किरायेदार रखना और उसे इज्जत के साथ निभाने की कला भी सब मकान मालिकों को नहीं आती है इसलिए कई बार छोटी छोटी बातों पर खटपट, मनमुटाव होना आम बात होती है. इसमें किरायेदार की सोच का भी फर्क होता है क्योंकि कुछ किरायेदार सोचते हैं कि किराया दे रहे हैं, मुफ्त थोड़े ही रह रहे हैं.

कर्नल साहब का नजरिया कुछ अपने ढंग का रहा है. वे किसी व्यापारी या छड़े-छाँट आदमी को किराए पर नहीं देना चाहते हैं. व्यापारी लोग रहन-सहन में बहुत अनुशासित नहीं लगते हैं तथा वक्त जरूरत उनसे घर खाली करावाना भी भारी पड़ सकता है. किरायेदारी क़ानून में सुरक्षा की दृष्टि से, घर केवल ग्यारह महीनों के लिए देने की बात भी सोच रखी थी. अकेले या छड़े व्यक्ति को किराये पर कमरे देने के बारे में मेहरा जी के अलग ही रिजर्वेशन हैं क्योंकि घर में दो जवान बिन ब्याही बेटियाँ भी हैं.

घर के गेट पर ‘TO-LET’ का नोटिस देख कर अनेक लोग आये, पर कर्नल साहब ने सब को अपने तराजू में तोल कर टरका दिया. सोच यह भी थी कि कोई अच्छे परिवार वाला हो, मित्रों की तरह रहे. अच्छा पड़ोसी मिलना भी जीवन का सुख होता है. लेकिन जब विजयसिंह आया तो कर्नल साहब को उसमें कुछ खास नजर आया. वह शानदार टाई-सूट में अपने ऑफिस की नई बोलेरो गाड़ी में खुद चलाते हुए आया था. विजयसिंह ने अपनी कैफियत में कर्नल साहब को बताया कि वह शादीशुदा है, उसका पाँच साल का एक बेटा भी है. उसकी माँ रेलवे में मेडीकल ऑफिसर है, वह मूल रूप से झारखंड का रहने वाला है, और एक नामी हैवी अर्थ मूवर्स मशीनों की बिक्री व रिपेयर्स काम करने वाली कम्पनी का सेल्स मैनेजर है.

विजयसिंह एक एम.टेक., एम.बी.ए, योग्यता वाला ऑफिसर है. लोग उसमें एक ही कमी बता सकते हैं कि वह शक्ल-सूरत से एकदम काला है और चेहरे के नाक नक्श भी बहुत अनाकर्षक हैं.

कर्नल साहब ने सब विवरण लेने के बाद विजयसिंह को कमरे किराए पर देने का निश्चय किया. वह मुँहमाँगा किराया भी देने को तैयार था. उसके नाम में ‘सिंह’ लगे होने के कारण कर्नल साहब को वह जातिभाई भी लग रहा था.

अपने अत्याधुनिक घरेलु सामान के साथ विजयसिंह उस क्वार्टर में रहने आ गया, पर उसके परिवार का कोई सदस्य साथ में नहीं आया. उसने इसका कारण बताया कि पत्नी का स्वास्थ्य खराब चल रहा है इसलिए दिल्ली में अपने माता-पिता के पास है, और ईलाज भी चल रहा है. और कहा कि अगले महीने तक आ जायेगी. लेकिन अगला महीना कहते कहते आठ- नौ महीने बीत गए तो कर्नल साहब को लगा कि विजयसिंह लगातार झूठ बोले जा रहा है. वह उसके प्रति शंकित रहने लगे. शंका ऐसी बीमारी है कि रस्सी भी सांप सी नजर आने लगती है.

इतने में एक दिन विजयसिंह की माँ, मौसी-मौसा, व साथ में विजय का बेटा वहाँ आ पहुंचे. कर्नल साहब ने उन सबसे सवालात पूछ डाले तो मालूम हुआ कि वे लोग ईसाई हैं. विजय सिंह की पत्नी ‘स्कित्जोफ्रेनिया’ (मानसिक रोग) से पीड़ित है. जैसा कि विजय की माँ ने बताया “बहू के  मायके वालों को उसकी बीमारी के बारे में पहले से मालूम था, लेकिन उन्होंने धोखे से उसकी शादी कर दी... बच्चा भी हो गया, पर उसको जब पागलपन के दौरे पड़ते हैं तो वह काटने नोचने को उतारू हो जाती है, यानि हिंसक हो जाती है. इसलिए हमारी तरफ से तलाक का मुकदमा चल रहा है.... उसके मामा लोग दिल्ली में सरकार के बड़े ओहदों पर हैं, उनकी सलाह पर हम पर उल्टे दहेज माँगने का आरोप लगा कर फँसाने की कोशिश की जा रही है. हम बड़े संकट में हैं, इसी चिंता में हम यहाँ आये हैं.”सच तो ये भी है कि माँ विजय से बहुत लगाव रखती है, शादी के दिन जब चर्च में पादरी साहब रस्में पूरी कर रहे थे तो वह बोली  "बेटा आज तक मेरा था, अब आज से पराया हो गया है."

इस बड़े लफड़े को सुनकर कर्नल साहब अजीब पशोपेश में आ गए. ऐसे में घर खाली करने को भी नहीं कह पा रहे थे. कुछ दिनों तक रुकने के बाद परिवार के सभी लोग चले गए. एक दिन अचानक विजयसिंह भी गायब हो गया. उसका मोबाईल भी स्विच-आफ आ रहा था. उसकी माँ को फोन लगाया गया तो उसने बताया कि गिरफ्तारी के डर से विजय भूमिगत हो गया है. उसकी माँ ने कर्नल साहब को कहा कि मकान का मासिक किराया वह उनके बैंक खाते में डालती रहेंगी.

इस प्रकार क्वार्टर ६ महीनों तक बन्द रहा, किराया आता रहा, पर कर्नल साहब को यह स्थिति बहुत अप्रिय लग रही थी. उन्होंने मानस बना लिया कि जब भी विजयसिंह लौटेगा वे उससे घर खाली करने को कहेंगे. इस सारे मामले के कारण कर्नल साहब के परिवार वाले भी अनावश्यक तनाव झेल रहे थे.

एक सुहानी सुबह विजयसिंह अपनी पत्नी इरावती व बेटा पौलुस के साथ लौट आया. कर्नल साहब को जल्दी ही मालूम हो गया कि पति पत्नी में सुलह-समझौता हो गया है. इरावती का स्वास्थ्य भी ठीक है. विजयसिंह पत्नी व बेटे के साथ खुश नजर आता है. आपसी वार्तालाप से कर्नल साहब को यह आभास हुआ कि बेटे और बहू के झगड़े में विजय की माँ का हाथ था. वह बहुत गुस्सैल है और बात बात में बहू पर अनर्गल आरोप लगाती रही है.

परिवार के एकीकरण का श्रेय विजयसिंह इरावती को देता है. वह यह भी बताता है कि उनके इस सुलह से माँ खुश नहीं है.शायद यह एक गहन मनोवैज्ञानिक मसला है क्योंकि विजयसिंह की माँ खुद भी एक तलाकशुदा औरत है.
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