मंगलवार, 29 मई 2012

आत्म-बोध

स्थान - एक झाड़ियों वाला हरा-भरा टीला. एक झाड़ी के इर्द-गिर्द एक कबरी बकरी और उसके दो छौने, संयोग से एक सफ़ेद चिट्टा और दूसरा चमकदार काला. पत्तियों को चरने का क्रम चालू था, श्वेत बकरा, श्याम वर्णी के लिए बार बार व्यवधान उपस्थित कर रहा था. फलत: दोनों में ठन गयी और दोनों ही उछल उछल कर सर टकरा कर लड़ाई पर उतर आये.

माँ ने मिमियाते हुए उनको झगड़ा न करने के कई इशारे किये, पर वे नहीं माने. श्वेत बकरे को अपने धवल होने का गुमान था और श्याम को समानाधिकार का ज्ञान. बकरी उसी तरह सर हिला हिला कर मिमियाती रही पर वे कहाँ मानने वाले थे? एकाएक ग्वाला आ गया, उसने हांक लगाई तथा डंडा घुमाया तो फैसला नहीं हो पाया. रास्ते में भी वे तुझे कल देख लूँगा. की मुद्रा में एक दूसरे को चुनौती देते रहे.

कल का दिन फिर उसी तरह से नहीं आया क्योंकि वे दोनों उसी दिन कसाई के हाथों बेच दिये गए.

दूसरा दृश्य:-

स्थान -  कसाई की दूकान. दोनों सहोदर बकरे हलाल कर दिये गए. दोनों की आत्माएं शरीर से निकल कर कसाई की दूकान के दरवाजे पर अटक कर अपने मृत शरीरों की चीर-फाड़ देख रही हैं. श्वेत की आत्मा बोली, मैं देख रही हूँ कि हम दोनों के रक्त-माँस और हड्डियों में कोई अंतर नहीं है.

इस बात पर काले की आत्मा बोली, फिर भी तुझे अपने सफ़ेद होने का बड़ा गुमान था. पर, अब मैं इसमें तुम्हारा भी दोष नहीं मानती हूँ क्योंकि हम तो पशु योनि में थे, लेकिन मनुष्य योनि में जन्मे प्राणियों को कैसे माफ किया जा सकता है, जबकि उन्हें अपार बुद्धि एवँ साधन-शक्तियां परमात्मा ने दे रखी हैं?
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