मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

अपनी बात


शुभ आशीषें शीर्षक से माँ के दस पत्रों की श्रंखला अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करके मुझे उसी तरह का सन्तोष हो रहा है जैसा कि किसी स्कूल के विषयाध्यापक को अपनी कक्षा के बच्चों का वार्षिक कोर्स पूरा करने पर होता है. एक जिम्मेदारी सी बहुत दिनों से मन में थी, अब बोझ हल्का महसूस कर रहा हूँ.

दरसल इस विषय की सोच मुझे सन १९८० के दशक में आई थी, किशोर बेटियों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए एक काल्पनिक विदुषी प्यारी माँ के पात्र की मैंने रचना की थी.

कोटा, राजस्थान में जे.डी.बी. गर्ल्स कॉलेज की हिन्दी विभाग की अध्यक्ष स्वर्गीय डॉ. शकुंतला उपाध्याय जी ने मेरी कई रचनाएं देखी-पढ़ी थी. इन खास पत्रों को उन्होंने बहुत सराहा तथा, और मुझे सलाह दी थी कि इनको एक पुस्तिका के रूप में छपवाऊँ, जिसके लिए उन्होंने एक प्रेरणास्पद भूमिका भी लिखकर दी थी. पर तब मैं छापने-छपवाने की इच्छा रखते हुए भी प्रकाशित नहीं कर सका.

अब इंटरनेट पर अपने ब्लॉग जाले' के माध्यम से मामूली से सुधार करते हुए इनको प्रकाशित करके आनंदित हो रहा हूँ. आनंदित होने का कारण ये है कि मेरे सुधी पाठकों तथा अनेक विद्वतजनों ने इनकी भरपूर प्रशंसा की है तथा विषयवस्तु को किशोर बेटियों के ज्ञान वर्धन में एक अच्छा प्रयास बताया है.

मैं ब्लॉग पर आई किसी टिप्पणी का उत्तर नहीं दे पाया. हमारी वाणी, इंडी ब्लॉगर तथा फेसबुक पर मेरे वाल के माध्यम से जिन शुभाकांक्षी एवं मित्रों ने इनको पढ़ने का समय निकाला उन सभी को मैं हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ.

नामजद लोगों में, स्वनाम-धन्य आदरणीय डॉ. रूपचंद शास्त्री मयंक, चंद्र भूषण मिश्र गाफिल, इंदु छाबरा, केवलानंद जोशी, राजेन्द्र जी स्वर्णकार, कपिल शर्मा, अवंती सिंह, डॉ. आशुतोष मिश्रा आशु, रजनीश तिवारी, राजेश कुमारी, धीरेन्द्र जी, अरुण साथी, दिनेश पारीख, शरद खरे सिन्हा, सदा, रविकर फैजाबादी, स्मार्ट इन्डियन अनुराग शर्मा, रीना पन्त, एस. एन. शुक्ला, अनुपम पात्रा, सीमा, पृथ्वी जायसवाल, हेम पाण्डेय, रेखा चंदोला, सीमा श्रीवास्तव, शशि प्रकाश सैनी, नवनीता धर, नीरज कुमार, नितिन, अनुपम कर्ण, त्रिवेणी देवराड़ी, सोम शेखर, सारु सिंघल, शहर गुडगाँव, शमशुद अहमद, अमित अग्रवाल, वीनू, इंदु रविसिंह, भुवन जोशी, संजय नैनवाल, संगीता छिमवाल नैनवाल, सागर पाण्डेय, डॉ. कविता सहारिया, आदि अनेक प्रिय पाठकगण, और अंत में मेरी इस श्रंखला की प्रेरणा श्रोत मेरी प्यारी बेटी गिरिबाला पाण्डेय जोशी.

इन्हीं शब्दों के साथ सर्वे सुखिन: सन्तु. इति.
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