गुरुवार, 19 जनवरी 2012

पीपल और मैं


बहुत से लोग जन्मदिन धूमधाम से मनाते हैं. शौकीन लोग तो अपनी सगाई व शादी की सालगिरह भी मनाते हैं. कुछ भाग्यशाली ऐसे भी होते हैं जो अपनी इन तिथियों की सिल्वर जुबली या गोल्डन जुबली समारोह-पूर्वक मनाते हैं. डाइमंड जुबली या प्लैटिनम जुबली की बात मैं नहीं करना चाहती हूँ. क्योंकि उम्र के इन पड़ावों पर सम्बंधित लोग सब कुछ मना कर दूसरे लोक मे पँहुच चुके होते हैं अथवा अल्जाइमर्स के शिकार हो चुके होते हैं.

मेरी बात और है, मैं तो तुम्हारे प्यार की याद में उसी तरह रतजगा करती हूँ जिस तरह ठीक ५० साल पहले आज ही के दिन तुमने मुझे चुपके से ये सुनहरा पीपल का पत्ता अपने दिल के रूप में क्लास रूम में ही कापी में छुपा कर दिया था. तुम्हारी वो शर्मीली चोर निगाहें मुझे अभी तक याद हैं. इस पहले और आख़िरी प्यार की निशानी को मैंने अनमोल सौगात की तरह सम्हाल रखा है. ये बिलकुल दिल के आकार का है तुमने शरारतन बड़ी हिम्मत करके मुझे दिया था और मैंने मुस्कुरा कर तुमको प्यार की स्वीकृति दी थी. आज इतने अरसे के बाद मैं ना जाने क्यों उसी दिन की तरह तुम्हें अपने पार्श्व में महसूस कर रही हूँ. मन चँचल हो रहा है और हिरनी के अल्हड़ छोने की तरह कुलाचे भर रहा है. शायद ये इसलिए भी हो रहा है कि मेरे इकलौते व एकाकी प्यार की अनुभूति की आज स्वर्ण जयन्ती है.

तुम ना जाने मेरे किशोर मन पर मनभावन सपनों की छाप छोड़ कर कहाँ चले गए और सँसार की भीड़ में खो गए. मैं तुम्हें भूल नहीं पाई हूँ. नित्य जीवन के हर छोटे मोटे मोड़ पर तुम्हारी छुवन महसूस करती रहती हूँ.

मेरे घर के पास एक पीपल का पेड़ लगभग तुम्हारी-मेरी उम्र का सीधा सपाट खडा है. इसे शायद पास के मंदिर वालों ने लगाया होगा और सींचा होगा. पिछले कई वर्षों से मैं इसमें तुम्हारा प्रतिरूप देखने लगी हूँ. आस-पास मोहल्ले की औरतें वार-त्योहार इसकी प्रदक्षिणा करती हैं, और सिन्दूर लगा कर अक्षत-पुष्प चढ़ा कर जाती हैं. सुहागनें इसमें कलेवा-धागा लपेट कर बाँध जाती हैं. मेरा मन करता है मैं भी तुम्हें अपने डोरे में लपेट कर बाँध लूँ, पर नहीं, मैं तुम्हें बांधूंगी नहीं क्योंकि मैंने तुम्हें सच्चे दिल से प्यार किया है. तुम पुरुष हो अनंत आकाश में ना जाने उड़ कर कहाँ चले गए हो? नारी मन के कोमल भावों के बारे में सोचने की तुम्हें कहाँ फुर्सत होगी? तुम तो मुझे चेतन-अचेतन मन से पूरी तरह भूल चुके होगे, अन्यथा क्या तुम्हें मेरी कभी याद नहीं आती? ना सही, तुम कहीं अपने सँसार में सुखी होगे, मुझे अब इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं रहती है. लेकिन इस माघ-फागुन की बसंती बयार में जब इस पीपल के पत्ते सरसराहट करते होते हैं तो मुझे लगता है कि तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो. मैं कान लगा कर इस मधुर ध्वनि-संगीत का पान करती हूँ और आँखें बंद करके तुम्हारे उसी किशोर स्वरुप को हिलते-डुलते महसूस करती हूँ.

अब पतझड़ शरू होने जा रहा है और जब भी एक पत्ता खड़खड़ाता हुआ तितली की तरह तैरता हुआ नीचे आता है तो मैं भाग कर उसे पकड़ने की कोशिश करती हूँ, ये सोच कर कि तुम निरंतर ऐसे प्रेमपत्र मुझे भेजते रहते हो और हर पत्र में नई इबारत व चाहना की भावना भरी होती है.

कभी-कभी जब तेज हवा इन पत्रों को कहीं दूर उड़ा कर जाती है या सुबह-सुबह सड़क झाड़ने वाला इन्हें उठा कर ले जाता है तो मैं बहुत उदास हो जाती हूँ. कल मुझे एक बड़ा सा सूखा-पीला पत्ता मिला जिसमें ऊपर की परत नहीं थी और झीनी-झीनी जाली बनी हुई थी. मैंने उसे उठा लिया, उसकी बारीक खिड़कियों में तुमको ढूँढने के लिए बहुत देर तक दृष्टि गड़ाये रही. मैंने पाया तुम मेरे साथ वहीं थे अनेक रूपों में माया नगरी के नवरंगों में कभी राज कपूर-नर्गिस, कभी राजेन्द्रकुमार-माला सिन्हा या कभी देवानंद-वहीदा रहमान के रूप में नृत्य-गायन करते हुये मेरे सपने व छद्म अवधारणाएं तुम्हारे ही रंग में सरोबार भीगती रही.

सड़क के उस पार ठीक मेरे इस पीपल के पेड़ की सामने एक सेमल का पेड़ भी है. वह अभी पूरी तरह पत्र विहीन है. उस पर छोटी-छोटी कोपलें और सुर्ख लाल फूलों के गुच्छे खिलने लगे हैं. हर साल इसी मौसम में इसमें ढलती तरुनाई का ज्वार उठता है. मैं खुद को इस सेमल के पेड़ के रूप में देखने लगी हूँ. तुम्हारी इस नजदीकी से मुझे अब अधिक आनंदानुभूति होने लगी है. मैं तुम्हारी मृदुल हंसी और सरसराहट को सुन कर मन्त्र मुग्ध  हूँ. अनंत काल तक साथ निभाने का वादा करती हूँ. इस स्वर्ण जयन्ती पर तुमको भी अनेकों मुबारकबाद देती हूँ.
                                     ***  .          

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहोत सुन्दर स्मरण
    पोस्ट बेहद अच्छी लगी
    समय मिले तो यहाँ भी पधारिये http://antarmannn.blogspot.com

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  2. कोमल! क्या इसे ही छायावाद कहते हैं?

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  3. कोमल एहसाससोन से सजी भावपूर्ण अभिव्यक्ति....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  4. Aapka yeh sansmaran wakai mein kabile tareef hai. Very very heart touching . Boht badiya aur boht he saaf , swacha , aur komal pyaar ka chitran and varnan.

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