बुधवार, 11 जनवरी 2012

अँकल

मैं धरिणी हूँ, सजला हूँ, करुणा, ममता, प्यार व पंचभूत धारिणी हूँ. मैं अपने सूरज के बंधन में ऐसे बंधी हुई हूँ कि निरंतर उसी के इर्द घूमती रहती हूँ. मुझे उससे असीम प्यार है क्योंकि मेरे जीवन का वह अवलम्बन है. मैं उसके बिना अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकती हूँ. मेरा उससे सम्बन्ध असीमित है, अनादि काल से है और अनंत काल तक निर्वाध रहेगा. वह मेरी ऊर्जा का श्रोत है, उत्पति-कारक भी है. मेरा स्थावर-जंगम सब सूरज के प्रताप से उजागर तथा प्रभावी है. इसलिए मैं पूर्णरूप से उसे समर्पित हूँ. वह विराट है, विशाल है, और सक्षम है. अत: मेरे लिए उसका कोई विकल्प नहीं है.

शशि, एक तुम हो, निर्मल, निस्तेज व वक्री. अनेक कलाएँ दिखाते हुए न जाने कब से मेरे चक्कर काट रहे हो? मुझे मालूम है कि तुम अविरल भाव से स्नेहसिक्त होकर ये सब करते आ रहे हो या यों कह दूं कि तुम अनन्य भाव से मुझ से प्यार करते हो पर मैं अपने प्यार को बाँट नहीं सकती हूँ. मैं तुमसे तुम्हारे अटूट आकर्षण के लिए श्रद्धाभाव रखती हूँ. यद्यपि तुम्हारी शीतलता मुझे समयानुसार भाती बहुत है. मुझे एहसास होता है कि प्यार का ये भी एक पहलू है. तुम मेरे नजदीक आकर ज्वार-भाटा पैदा करके उद्वेलित करते रहते हो, मुझे ये गुदगुदी अच्छी लगती है पर मेरी तरफ से कोई विषय-एषणा नहीं होती है क्योंकि मैं सूर्य-प्रिया हूँ.

कभी जब तुम स्वभाव वश ग्रहण बन कर हमारे बीच आने का प्रयास करते हो तो मैं बहुत व्यग्र व भयग्रस्त हो जाती हूँ लेकिन मैं ये जानती हूँ कि तुम कभी भी मेरा अनिष्ट नहीं सोचोगे. सच्चे प्यार का यही तो शाश्वत धर्म है.

तुम्हारे अपने उपग्रह भी हैं, मुझे इनकी उपस्थिति भी अच्छी लगती है. वैज्ञानिक अब मेरे-तुम्हारे संबंधों का तारतम्य जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. कहते हैं कि तुम्हारी और मेरी सुप्त धातुओं में बहुत कुछ समानता है. वे जीन्स मिला रहे हैं ताकि तुमको मेरा नजदीकी रिश्तेदार बताया जा सके. मैं उनके परिणामों की दिल से प्रतीक्षा करती रहूंगी ताकि मैं तुम्हें मामा, फूफा, या कुछ और रिश्तों से चाहती रहूँ. इस सम्बन्ध में मुझे अंग्रेज़ी का शब्द अँकल बड़ा मुफीद लगता है.
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