मंगलवार, 29 नवंबर 2011

मेरी मॉम का दोस्त


मैं, डेविड फ्रेंकलिन, गौड को हाजिर नाजिर करके जो कुछ भी कहूंगा सच-सच कहूंगा. मेरा डैड जोजफ फ्रेंकलिन एक एंग्लोइन्डियन था और मेरी मॉम एक गोवानी केथोलिक. इन दोनों की प्रेम कहानी का मुझे ज्यादा मालूम नहीं है, पर मेरा ये सोचना था कि मेरा डैड बहुत अच्छा आदमी रहा होगा. उसमें एक अंग्रेज के सभी संस्कार व आदतें रही होंगी. मैं बहुत छोटा था तभी वह ना जाने किस बात पर मॉम से अनबन करके इंग्लेंड चला गया था. उसके बाद पलट कर वापस नहीं आया. मैं हमेशा ही उसकी कमी को महसूस करता रहा.

मेरी मॉम डोरिया मेस्कारिन्हास एक नर्स थी. वह मेरी तरह गोरी चमड़ी की तो नहीं थी पर ज्यादे काली भी नहीं थी. वह मुझसे बेहद प्यार करती थी. प्यार तो डैड भी करता था लेकिन उसका प्यार पक्का नहीं था, अगर वह पक्का प्यार करता होता तो मुझे यों अकेला छोड़ कर नहीं जाता. मैं उससे अब नफरत करता हूँ. उससे ज्यादा प्यार तो मुझे अंकल डाक्टर स्टीफन से मिला जो मेरे लिए बाप से भी ज्यादा केयरिंग था, डियर और नियर भी.

डाक्टर स्टीफन मेरी मॉम का दोस्त था. वह उम्र में मॉम से बहुत बड़ा था. वीकएंड्स पर हमारे घर आता रहता था. मुझे उसका सानिध्य बहुत अच्छा लगता था. वह बहुत मजेदार बातें करता था और मुझे नई नई बातें बताता था. मैं थोड़ा समझदार होने लगा तो मॉम ने मुझे अपने शहर रतलाम से दूर इंदौर के मिशन स्कूल में डाल दिया. ये सब मजबूरी भी थी क्योंकि मॉम को मेरी वजह से नाईट ड्यूटी करने में बहुत परेशानी हो रही थी. वह मुझे तब आया के भरोसे छोड़ना पसंद नहीं करती थी.

हॉस्टल में मुझे मॉम की बहुत याद आती थी, कभी कभी भाग कर रतलाम जाने का मन करता था. महीने-दो महीने में मॉम मुझसे मिलने इंदौर जरूर आती रहती थी. कभी कभी डाक्टर अंकल भी साथ में आता था. ना जाने क्यों अब मुझे उसका साथ में आना अच्छा नहीं लगता था. मेरे दोस्त जब उसके बारे में पूछते थे कि क्या ये तुम्हारा डैड है? तो जवाब देने में मुझे शर्म सी आने लगती थी कि वह मेरे मॉम का दोस्त है.

मैंने एक बार मॉम से कहा भी कि अंकल का आपके साथ आना मुझे अच्छा नहीं लगता है तो मॉम ने तुनक कर कहा ह्वाट हैपंड? ही इज अवर फ्रेंड. पता नहीं मेरे मन में बसा हुआ चोर मॉम व अंकल के आपसी रिश्तों के बारे में बहुत गलत-गलत सोचने लगा. मुझे लगने लगा कि हो ना हो मेरा डैड इसी आदमी के कारण हमको छोड़-छाड़ कर गया हो? दिन रात यही विचार घूमता रहता था कि क्या मैं मॉम की गलती का शिकार हूँ? क्या इसी बात से खफा होकर मेरा डैड हिन्दुस्तान छोड़ कर गया?

मैं कॉलेज में पहुंचा तो इस बाबत ज्यादा सेंसिटिव हो गया. ऐसे ऐसे गलत ख़याल मन में आते थे और मैं अन्दर ही अन्दर उग्र होने लगा. मॉम के बारे में सोचता था कि ना जाने उसको कितनी मजबूरी झेलनी पड़ी होगी? माँ तो माँ है मेरी रगों में उसी का तो खून दौड़ रहा है. कुछ सोच ऐसी भी थी कि मैं बोल भी नहीं सकता था और मैं अत्यधिक बेचैन रहने लगा था.

मेरा जिगरी दोस्त सुजान सिंह, मेरा रूम मेट भी था. वह एक रियासत के ठिकाने का ठाकुर-बन्ना था. उसमें अनेक राजसी गुण-लक्षण थे. एक दिन जब मैं बहुत तनाव में था तो उसने कुरेद कर मुझसे मेरी सारी उलझन उगलवा ली. उसने कहा कि उसके पास १२ बोर की रिवाल्वर है जिससे डाक्टर स्टीफन को हमेशा के लिए मेरी मॉम की जिंदगी से हटाया जा सकता है. हम दोनों ने क्रिसमस की छुट्टियों में इस काम को अंजाम देने का पक्का प्लान बना लिया.

सुजान और मै छुट्टियों में रतलाम मेरे घर आ गए. मॉम बहुत खुश थी. क्रिसमस की तैयारी में जुटी हुई थी पर हमारे मन में कुछ और ही चल रहा था. मैं अपने डैड की पुरानी एल्बम सुजान को दिखाना चाहता था और मॉम की अलमारी के सेफ्टी कवर में खोज रहा था तो मुझे मॉम की एक पुरानी डायरी मिल गयी. उत्सुक्ताबस मैंने वह डायरी निकाल ली और सुजान के साथ मिलकर उसे पढ़ने लगा. डायरी में मॉम ने मेरे पैदा होने के पहले की बातों से लेकर बाद में हुए डेवलपमेंट्स को बहुत करीने से वर्णन किया था. उसके कुछ अंश इस प्रकार है:   
जोजफ फ्रेंकलिन ने मेरे साथ रेप किया था और मुझे मजबूर करके मेरे साथ शादी की.... जोजफ बहुत बदचलन था उसने बहुत सी लड़कियों को बर्बाद किया.... वह लड़कियों को ब्लैकमेल करके उनका शोषण करता था.... उसने मुझे जान से मरने की कोशिश भी की थी.... डाक्टर स्टीफन मेरा बड़ा भाई की तरह है. उसने हर मुसीबत में मुझे सहारा दिया.... वह गौडफियरिंग इंसान है.... चरित्रवान और ईमानदार है.... अगर डाक्टर स्टीफन मुझे मेंरे बेटे की पढाई व व्यवस्था के बारे में मार्ग दर्शन नहीं करता तो वह ना जाने किस गली में गुम रहता.... आखिर में ये भी लिखा था कि दुनिया उसके और मेरे बारे में कितनी गन्दी बातें करती रही पर वह मेरे लिए बाप से बढ़ कर है. God bless him.”

डायरी में और भी अनेक सन्दर्भों का जिक्र था जिनको पढ़ कर मेरा दिल भर आया आखों में आंसू छलक आये. मुझे अपनी गन्दी सोच पर बड़ा अफ़सोस हो रहा था. सुजान भी डायरी पढ कर बहुत भावुक हो गया था बोला, हम कितना गलत काम करने जा रहे थे? जिसको तुम्हारी मॉम ने देवदूत तक कहा है हम उसकी ह्त्या करना चाहते थे. Sorry, very sorry.”

इस बात को आज पचास वर्ष बीत गए हैं. अब इस संसार में न मेरी मॉम है और ना अंकल डाक्टर स्टीफन. मैं हर मौके पर मॉम की कब्र के अलावा अंकल की कब्र पर भी श्रद्धा के पुष्प चढ़ा कर आता हूँ. दुआ करता हूँ, ‘May his soul rest in peace!’
                                                                          ***          

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही रोचक कहानी ....समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  2. .कहानी की रोचकता अंत तक बनी रहती हैं आभार

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  3. जिज्ञासा भरी सुखांत कहानी रोचकता लिए हुए है, धन्यवाद.

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