मंगलवार, 13 सितंबर 2011

यथास्थिति

मलयालम के महाकवि वाल्लातोल नारायण मेनन पिछली सदी के महान हस्तियों में से एक थे. राजनीति, कला व साहित्य तीनों क्षेत्रों में उनकी लेखनी और कार्यशीलत्ता स्वर्णाक्षरों में है. राजनीति में वे कार्ल मार्क्स, रवीन्द्र नाथ टैगोर और महात्मा गांधी से प्रभावित माने जाते हैं. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय योगदान किया. कथकली नृत्य को उन्होंने नई ऊँचाईयाँ दी, इसके लिए चेरुथुरुथी (अब वहाँ का नाम वाल्लातोल नगर हो गया है) में कलामंडलम की स्थापना की. इस महाकवि ने साहित्य मंजरी जैसी उच्च कोटि की कृति हमें दी. इसके अलावा उनके लिखे साहित्य की सूची बहुत लम्बी है. जिस तरह शिव-श्त्रोत्र में नम: शिवाय पर पंचाक्षरी श्लोक लिखे गए हैं, उसी तरह वाल्लातोल ने सम्पूर्ण स्वर और व्यंजनों पर से शुरू होने वाले अर्थपूर्ण व सुन्दर श्लोक लिखे हैं. उनको मलयालम और संस्कृत पर पूर्णाधिकार प्राप्त था.

उनके द्वारा रचित श्लोकों में से स्वर पर लिखा श्लोक अति सुन्दर है, जिसमें हम भारतीय लोगों की यथास्थिति की मानसिकता को बड़े अच्छे ढंग से व्यक्त किया गया है.

से औदम्बर अर्थात गूलर. गूलर एक अंजीर प्रजाति का पेड़ होता है. इसके तने पर फल लगते हैं और फल के अन्दर एक कीट पैदा होता है, उसी में जीवन यापन करके उसी में मर जाता है. वाल्लातोल ने उस कीट से भगवान जी को प्रार्थना करवाई है कि हे ईश्वर, तूने मुझे इतने बड़े विश्व में पैदा किया, जहां मैं अपने बन्धु-बांधवों के साथ बहुत आनंद से रहा हूँ. कृपया मुझे अगला जन्म भी इसी विश्व में देना.

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