सोमवार, 19 सितंबर 2011

चुहुल – ४


                                    (१)
  गुरु प्राचीनानंद प्रवचन कर रहे थे. भारी जन समूह सुन रहा था. प्रवचन के बीच में किसी सन्दर्भ में उन्होंने बताया कि उनकी खुद की उम्र १००० वर्ष हो गयी है. ये बात श्रोताओं को हजम होने वाली नहीं थी. श्रोताओं के बीच में गुरू जी का एक चेला भी गेरुए वस्त्रों में विराजमान था. उसके बगल में बैठे एक युवक ने उससे कहा, तुम्हारा गुरू तो गप मार रहा है.

इस पर चेला बड़ी संजीदगी से बोला, हाँ, गप तो मुझे भी लगती है पर एक बात कहूँ, मैं इनको ५०० वर्षों से ऐसा का ऐसा देख रहा हूँ.

                                     **

                                    (२)
पंडित कृष्णवल्लभ त्रिपाठी शास्त्री 'भागवत की कथा' सुना रहे थे पांडाल में उस दिन श्रोता कम ही थे. चौधरी सोजत सिंह की माता जी, जिनकी उम्र लगभग ७५ वर्ष थी, महिलाओं की अग्रिम पंक्ति में आकार बैठ गयी. वह हाल में राजस्थान के किसी देहात से बच्चों से मिलने दिल्ली आई थी.

बात दिल्ली विश्वविद्यालय के मौरिस नगर कैम्पस की है. त्रिपाठी जी संस्कृत के श्लोकों के साथ साथ उनका शुद्ध हिन्दी में तर्जुमा करके सुना रहे थे. बीच-बीच में राधेश्यामी तर्ज पर पूरी तल्लीनता के साथ भजन भी सुना रहे थे.
माता जी उनके प्रवचन व भजनों से इतनी विह्वल हो गयी कि जब जब पंडित जी गाते तो माता जी की अश्रुधारा रोके नहीं रुक रही थी. कथा के अंत में तो वह सुबुकने लगी.

पंडित जी ये नजारा साफ़ देख रहे थे क्योंकि वह वृद्धा ठीक उनके सामने बैठी थी. अत: कथा समाप्ति पर आरती से पहले ही उन्होंने माता जी को अपने व्यास गद्दी के पास बुलाया और श्रोताओं को बताया कि माता जी कितनी भाव विह्वल हो रही थी, कथा में किस कदर डूब कर आनन्दित हो रही थी. उन्होंने माता जी से भी पूछना उचित समझा कि वह क्यों इतनी भाव विभोर हो रही थी?

माता जी ने ठेठ देहाती लहजे में बोला, मन्ने थारी बात पल्ले ना पढ़ी, पण थारी ओडाट सुन कर मान्ने अपनी भैस याद आगी, वो भी थारे नाई आवाज काढ़े थी. पिछले साल मरगी बेचारी.

श्रोता हँसते-हँसते लोटपोट हो गए और पंडित जी खिसिया कर मौन हो गए.

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                                         (३)
एक गुरु-चेला किसी धर्मशाला में ठहरे थे. थके हुए थे लेट गए. थोड़ी देर बाद गुरू ने चेले से कहा, बाहर देख कर आ बारिश तो नहीं हो रही है?
चेले ने जवाब दिया, गुरु, ये आपके बगल में बिल्ली बैठी है, अभी अभी बाहर से आई है. आप इसकी पीठ पर हाथ फिरा कर देख लो गीली है तो समझो बारिश हो रही है अन्यथा नहीं.
थोड़ी देर बाद गुरू ने फिर कहा, ये लाईट आँखों में लग रही है, आफ कर दे.
चेला बोला, गुरू, क्यों फालतू कष्ट दे रहे हो? आँखें बंद कर लो समझो कि लाईट बंद है.
गुरू को उसकी बात अच्छी नहीं लग रही थी फिर भी कह डाला, अच्छा, जा किवाड़ तो बंद करके आ.
चेले ने जवाब दिया, गुरू आप भी अजीब हो. सारा काम मुझसे करवाते हो. एक काम आप भी तो कर लो.

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